बहुत समय पहले की बात है, एक आवारा, बागी जीनियस मुंबई में पाया जाता था, नाम था रामगोपाल वर्मा। सब उसे रामू कहते थे।रामू ने कई एक सालों की मेहनत से मुंबई नगरी का ग्रैमर बदल दिया था। उनकी फैक्ट्री से निकली शिवा, सत्या, कौन, कंपनी जैसी फिल्मों ने कैमरे की लचक, बैकग्राउंड स्कोर की धमक और कहानी के कटीले असर को स्थापित किया। इस फैक्ट्री से अनुराग कश्यप जैसे तमाम प्रतिभाशाली डायरेक्टर, राइटर निकले। फिर कुछ सालों में ही रामू एक सनक का नाम हो गए।उन्होंने नाच, फूंक, वास्तुशा जैसी फिल्में बनाईं जो बॉक्स ऑफिस पर फेल रहीं और इस सनक में पूर्णाहुति का काम किया रामगोपाल वर्मा की आग ने। उस आग में रामू की इमेज ऐसी जली कि सरकार जैसी इक्का-दुक्का हिट भी उसे बचा नहीं पाईं।
आज की बात है कि पुराना रामगोपाल वर्मा परदे पर, कहानी में, कैमरे के पीछे लौट आया है। इस शुक्रवार को रिलीज हुई उनकी फिल्म नॉट ए लव स्टोरी इस बात की ताकीद पूरे तेवरों के साथ करती है। एक कहानी, जिससे हर कोई वाकिफ है, इतने सरल और सघन तरीके से अपने अंत तक पहुंचती है, कि सीखने को पूरा एक चैघ्टर मिल जाता है। स्टार नहीं, एक्टर अपने रोल ऐसे निभाते हैं कि बरसों याद रहने लायक मेमरी रील मिल जाती है। और कैमरा, उस पर तो पूरा एक पेज लिखा जा सकता है। जिसे सिनेमा का शौक है, जिसे कैमरे का शौक है, या जिसे सीन के समंदर की अनंत गहराइयां सीखनी हैं, उसे तो ये फिल्म बार-बार देखनी चाहिए। फिल्म में कैमरा हर फ्रेम में इतना कुछ कहता है कि नजर चूकी नहीं और एक गहरी अर्थपूर्ण व्याख्या मिस हो गई।भदेस लहजे में कहूं तो रामू का रौला पूरी ठसक के साथ कायम करती है ये फिल्म।
कहानी और कलाकार
हल्ला मचा है कि फिल्म मुंबई के नीरज ग्रोवर मर्डर केस पर बेस्ड है। नीरज एक टीवी कंपनी में था, जिसकी हत्या मारिया सुसाईराज नाम की मॉडल के प्रेमी एमिली जीरोम ने कर दी। इस फैक्ट के इर्दगिर्द फिल्म की कहानी बुनी गई है। अनुषा (माही गिल) मुंबई में है और एक्ट्रेस बनने के लिए पापड़ बेल रही है। घड़ी-घड़ी फोन कर हाल लेता है उसका प्रेमी रॉबिन(दीपक डोबरियाल), जो किसी दूसरे शहर में वाइट कॉलर जॉब कर रहा है। अनुषा देह के स्तर पर कोई सौदा नहीं करना चाहती इसलिए उसे आसानी से काम नहीं मिलता। फिर एक जगह बात बन जाती है और उसी दौरान बनता है कास्टिंग डायरेक्टर आशीष (अजय गेही) से उसका रिश्ता। ये रिश्ता दोस्ती का लगता है, कम से कम अनुषा की तरफ से, मगर एक रात अजय भावुक हो, शराब के नशे में खुद को अनुषा पर थोप देता है। फिल्म दिलाने की कृतज्ञता के नीचे दबी अनुषा कुछ नहीं कर पाती। उस रात की सुबह होती है रॉबिन की सरप्राइज विजिट के साथ। और फिर, रॉबिन अनुषा के फ्लैट का सीन देख गुस्साता है, कत्ल करता है, लाश को ठिकाने लगाता है, मगर आखिर में दोनों पुलिस के चंगुल में फंस जाते हैं।
इस सपाट घ्लॉट को रामू ने घना बनाया है, सिंपल एक्टिंग के जरिए। हर शॉट में दीपक और माही नेचरल रिएक्शन देते लगते हैं। इससे ठीक उस पल तो सीन जेहन में कोई ड्रामा पैदा नहीं करता, मगर कुछ मिनटों में वो आपके अंदर पैबस्त हो जाता है, अपने नेचरल टोन की वजह से। और इस पूरे प्रोसेस की वजह से आप फिल्म देखते नहीं, उसका हिस्सा बन जाते हैं। इस हिस्सेदारी में मदद करता है कैमरा, जो कभी तो रुक कर एक चेहरे, एक इमोशन या एक फ्रेम को गहरे से पकडऩे लगता है। पहले धुंधला और फिर साफ होता। या फिर हिलता डुलता रहता है, जैसे स्थिर गर्दन के ऊपर आंखें हिल रही हों, जूम इन जूम आउट हो रही हों।
दीपक ने अब तक ओंकारा, गुलाल जैसी फिल्मों में रॉ शेड वाले रोल किए हैं और जमकर किए हैं। मगर इस फिल्म में उन्हें रॉ हुए बिना उस पागलपन को दिखाना था, जो एकबारगी एक पल को हावी हो गया और फिर उस पल का करम मिटाने के लिए कायम रहा। उन्होंने बिना चीखे, बिना चेहरा बनाए रॉबिन की बेचैनी को शानदार तरीके से सामने रखा। माही इस फिल्म का सेंटर पॉइंट थीं और उन्होंने अनुषा के रोल में ये साबित कर दिया कि इंडस्ट्री को उनके एक्टिंग हुनर की कद्र करनी ही होगी।
रामगोपाल वर्मा की फिल्मों का रेग्युलर चेहरा हैं जाकिर हुसैन। उन्हें आप सरकार समेत तमाम फिल्मों में देख चुके हैं। इस फिल्म में वह इंस्पेक्टर माने बने हैं, कम देर के लिए आए हैं, मगर अपने गब्दू अपीयरेंस, ऑर्डिनरी ड्रेसअप में वो चिलिंग फैक्टर पैदा कर देते हैं, जो आप मुंबई जैसे घाघ शहर में एक सीआईडी ब्रांच के इंसपेक्टर में देखने की उम्मीद करते हैं।
कैमरा है नायकम
मैंने पहले भी कहा और अब इस पूरे पैराग्राफ में कहूंगा कि इस फिल्म की जान कैमरा है। एक सीन है जिसमें माही के फ्लैट में नंगी लाश पड़ी है। कैमरा उस लाश के मुड़े हुए पैर से अपना सफर शुरू करता है, उसके बैकग्राउंड में एक दूसरा नंगा अधदिखा पैर है माही का, उस पर जूम इन करता है और फिर उस फ्रेम में तीसरा पेयर आता है पैरों का, जो दीपक का है। यह पूरा सीन इतना सघन और प्रतीकात्मक है, कि आप सांस रोककर इसे पूरा का पूरा आत्मसात कर लेना चाहते हैं। नॉट ए लव स्टोरी में ऐसे तमाम सीन हैं। एक्ट्रेस का रोल हासिल करने के लालच में इस मोड़ तक पहुंची माही रो रही है और उसका सिर घर में एक दीवार पर टंगे छुटकू से मंदिर के फ्रेम पर टिक जाता है। मंदिर की मेटल सरफेस पर लिखा लाभ चमक रहा है उस दौरान। या फिर कमरे में एंटर करते ही कैमरे की राह में आ जाता है विंड चाइम, जिसके एक स्टिक पर मुस्कुराता आधा चांद बना है।
फिल्म के कैमरा वर्क की एक और खासियत इसका वीभत्स और घिनौना हुए बिना डर पैदा करना है। कहानी है कि लाश को कई टुकड़ों में काटा जाता है, मगर रामू कहीं भी इस सीन को नहीं दिखाते। खून का एक्स्ट्रा शॉट नहीं भरते। लाश को जलते नहीं दिखाते। फिर भी सब कुछ आपके जेहन में दिखता है। यहीं ये फिल्म क्लासिक के दर्जे की दावेदार हो जाती है। सोचें एक सीन है, जिसमें माही को एक कमरे से होकर बाहर जाना है। उस कमरे में लाश के कई टुकड़े पड़े हैं। माही उबकाई न महसूस करे, इसलिए दीपक उसका चेहरा जबरन थामता है ठोड़ी से और नजर ऊपर छत पर कर बाहर निकालता है। आपको पता है कि लाश है, आपको दिख नहीं रही, मगर आपके जेहन से हट भी नहीं रही।
और अंत में...
रामू रियलिटी टच वाली स्टोरी के राजा हैं। कंपनी, जंगल और सरकार जैसी फिल्मों में वह यह साबित कर चुके हैं। नॉट ए लव स्टोरी उसी कड़ी का एक अहम पड़ाव है। हमेशा की तरह संदीप चौटा का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है, मगर गाने कहीं कहीं फिल्म की तीव्रता घटाते लगते हैं। और यहां जिक्र करना जरूरी है फिल्म के क्लाइमेक्स का, जो तसल्लीबख्श भी है और ये बताता भी है कि कहानी हजार अंत लेकर पैदा होती है। ये फिल्म देखिए, मगर कूची कूची लव स्टोरी मोड में नहीं। डीटी में फिल्म देखने के दौरान इस तरह के कई कपल उठकर चले भी गए थे। फिल्म देखिए क्योंकि ये सिनेमा का एक नया सपना, एक नई सच्चाई आपके सामने रखती है।
4 स्टार
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