शनिवार, दिसंबर 11, 2010

अच्छी खासी बरात का बजा दिया बैंड

सौरभ द्विवेदी

मैं गधा हूं। ये बात मेरे डैड मुझसे अक्सर कहते हैं। फिल्म में हीरो बिट्टू शर्मा हीरोइन से माफी मांगते हुए कहता है। मगर मुझे लगता है कि सबसे बड़ा गधा यशराज बैनर है। हिट के लिए तरस रहे इस मिडास टच बैनर ने फस्र्ट हाफ तक अच्छी खासी चल रही फिल्म का कबाड़ कर दिया। सेकंड हाफ में जबरन खींची गई स्टोरी, यकीन से परे ट्विस्ट और फिर एक बड़े से स्टेज पर धुंआधार अपमार्केट डांस नंबर ने फिल्म के स्टार कम करा दिए। फिर भी बैंड बाजा बरात ठीक मूवी है। अनुष्का शर्मा और रणवीर सिंह ने उम्दा एक्टिंग की है। फिल्म की लोकेशन और डायलॉग बॉलीवुड की दिल्ली नहीं, बल्कि दिवाकर बनर्जी की दिल्ली का दर्शन कराते हैं। डायलॉग भी दिल्ली की भदेस भाषा में रचे पगे हैं। सेकंड हाफ के कुछ झोल छोड़ दें, तो फिल्म ठीक है।

कहानी के कुछ तार
एक शादी में श्रुति वेडिंग प्लैनर की असिस्टेंट के तौर पर काम कर रही है। बिट्टू दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज का स्टूडेंट है और अपने वीडियोग्राफर दोस्त के साथ शादी में मुफ्त का खाना उड़ाने पहुंचा है। यहीं उसका नैनमटक्का हो जाता है श्रुति के साथ। श्रुति उसे झाड़ती है, मगर जनाब तो अगले रोल से ही डीटीसी की बस में उनके पीछे पड़ जाते हैं। फिर सहारनपुर वापस जाकर गन्ने के खेत में काम करने की बजाय बिट्टू श्रुति के साथ जुड़कर वेडिंग प्लैनिंग का काम शुरू करने की सोचता है। फिर कहानी शुरू होती है उनकी कंपनी शादी मुबारक की। शुरुआत जनकपुरी टाइप मिडल क्लास वेडिंग से होती है। दोनों की लाजवाब टीम जल्द ही हाई क्लास शादियों की कैटिगरी में भी धांसू एंट्री मारती है।
श्रुति का उसूल है कि व्यापार में प्यार मिक्स करने का नहीं, वर्ना करियर की धन्नो लग जाती है। मगर साथ में रहने से प्यार पनपने के दर्शन के तहत श्रुति और बिट्टू करीब आ जाते हैं। इस करीबी के बाद श्रुति को महसूस होता है कि बिट्टू ही उसका मिस्टर लव है, मगर बिट्टू बाबू तो किसी दूसरे ही प्लैन पर पहुंच चुके हैं। करीबी के बाद बिट्टू श्रुति से कटने लगता है और फिर नतीजा ये कि दोनों अलग हो जाते हैं। टीम के टूटने के बाद दो वेडिंग प्लैनिंग कंपनी शुरू होती हैं और दोनों की ही मार्केट में दुर्दशा शुरू हो जाती है।
हालात दोनों को फिर एक साथ ले आते हैं, तमाम कड़वाहट के बावजूद। इस दौरान बिट्टू को एहसास होता है अपनी गलती का और फिर हैप्पी एंडिंग। अरे इंडिया का सिनेमा है तो हीरोइन हीरो को ही मिलेगी न।
क्या खास है इस फिल्म में
लीड पेयर ने बहुत नेचरल एक्टिंग की है। अनुष्का के खाते में पहले से ही रब ने बना दी जोड़ी और बदमाश कंपनी जैसी हिट फिल्में हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत है गर्ल नेक्स्ट डोर वाला चेहरा और बॉडी लैंग्वेज। श्रुति के रोल में अनुष्का परफेक्ट लगी हैं। उनका जूती, जींस, टीशर्ट और स्टोल का कॉम्बो हो या करियर की धुन में मगन लड़की का कैरेक्टर, सब आहिस्ता से अच्छे लगने लगते हैं। वहीं चमकीले कोट और कभी चेक वाली शर्ट पहनने वाले और बिजनेस को बिन्नेस बोलने वाले बिट्टू के रोल में रणवीर कहीं से भी न्यू कमर नहीं लगे हैं। फिल्म की लोकेशन रियल दिल्ली की गलियों से ताकत पाती हैं, तो डायलॉग आज के दिल्ली की ग्रामर से निकले नजर आते हैं। सेटअप और कॉस्ट्यूम पर की गई मेहनत साफ नजर आती है। इसके अलावा फस्र्ट हाफ में चुस्त स्क्रिप्ट भी फिल्म का एक स्ट्रॉन्ग पॉइंट है।
बॉक्स
स्टाइल बहुत ऑरिजिनल है भाई
कुछ कपड़ों पर नजर ठहर जाती है। फिल्म के पहले ही गाने में अनुष्का ने पीकॉक ग्रीन कलर का कुर्ता, रेड पटियाला सलवार और हल्के मेंहदी कलर का टुपट्टा पहना है, जो शादी के झिंटाक मूड को रिफलेक्ट करता है। इसके अलावा वेलवेट के झिंटाक मटीरियल से बने कोट में रणवीर देसी कूल नजर आते हैं। क्लाइमेक्स में अनुष्का की साड़ी पर भी नजर ठहरती है।
पोस्टमॉटर्म हाउस
यशराज बैनर भले ही अपनी पतली हालत को सेहतमंद बनाने के लिए अच्छी और नई स्क्रिप्ट और नई स्टारकास्ट के साथ लो बजट फिल्मों के ग्राउंड पर उतर गया हो, मगर अपने बेसिक मसालों का तड़का लगाने का लालच उसे फिर झटका दे सकता है। सेकंड हाफ में फिल्म बहुत स्लो हो जाती है। प्यार के कन्फ्यूजन को कुछ ज्यादा ही लंबा खींच दिया गया है। इसके अलावा एक बिजनेसमैन की लीड पेयर के अलग होने के बाद फ्लॉप बिजनेस के डिटेल्स हासिल करना भी गले नहीं उतरता। और लास्ट में एक बड़ी शादी में लीड पेयर का शाहरुख के न आने पर शो करना भी फिल्म के ऑरिजिनल ट्रैक से मैच नहीं करता।
बैंड बाजा बारात देखी जा सकती है, ऑरिजिनल सेटअप और दिल्ली की जुबान के लिए। एक नए कॉन्सेप्ट के लिए। मैं तो एंवे, एंवे, एंवे लुट गया गाने के लिए और झिंटाक टोन के लिए। लीड पेयर ने श्रुति और बिट्टू के रोल को जिंदा कर दिया है, मगर सेकंड हाफ में ज्यादा जोर पॉपकॉर्न पर ही रह पाता है और टिक टिक घड़ी देखते हुए फिल्म खत्म होने का इंतजार करने लगती है पब्लिक।
फिल्म का एक और पहलू है। वर्जित प्रदेश यानी करीबी वाले सीन बहुत खूबसूरती से शूट किए गए हैं और कतर्ई वल्गर नहीं लगते। बैंड, बाजा, बाराज इस सीजन की अच्छी मूवी हो सकती थी, मगर यशराज ने इसे एवरेज से कुछ ठीक फिल्म में तब्दील कर दिया है। रेग्युलर फिल्मों से बोर हो गए हैं, तो हिम्मत करते इसे देखा जा सकता है।

1 टिप्पणी:

Parag ने कहा…

are aap is bar star dena to bhool hi gaye :)