सीन 1
1904 की बात है। एक बुजुर्ग जिनका नाम चंद्रधर शर्मा गुलेरी था, अपनी तख्ती पर बैठे कहानी बुनने में लगे थे। कहानी का नाम था उसने कहा था। गुलेरी जी कहानी में मासूमियत को पिरोना चाहते थे, मगर एक बारीक रेशे की तरह जो बांधता तो है, मगर दिखता नहीं। कहानी में जिक्र आया, अमृतसर का, वहां की मीठी बोली का और एक लड़का, लड़की का। दही की दुकान पर लड़की को देख लड़का पूछता है, तेरी कुड़माई हो गई। लड़की बोलती है, धत्त और भाग जाती है। फिर कुछ रोज बाद वही लड़का, लड़का-लड़की, वही सवाल, इस बार लड़की कहती है, हां हो गई, देखते नहीं ये सलमा सितारों वाला पल्लू।
कट सीन 2
24 नवंबर 2010
सेक्टर 36 के डीएसओआई क्लब में गाना बज रहा है, भौंरे की गुंजन है मेरा दिल। सलमा सितारों वाली लाल साड़ी में एक लड़की सजी धजी सहेलियों के साथ घूम रही है। आज उसकी कुड़माई है। लड़का देखने में तो ठीक है, मूंछें रखे भरा-पूरा, मगर उसका चेहरा लड़की से ज्यादा गुलाबी हो रखा है। देखने वाले बताते हैं कि लड़का ऐसा नहीं था। खूब बोलता और घबराया हुआ तो कभी नहीं दिखता। फिर सगाई के लिए रखी कुर्सियों पर बैठने के 30 सेकंड के अंदर ही लड़के ने दो बार बाल संवारे और फिर दो गिलास पानी पी गया। सब कहते स्माइल तो कुछ देर मुस्कराता, गालों के डिंपल दिखाता और फिर चुप हो जाता। उधर लड़की मुस्कराए जा रही थी। अंगूठियों बदलने, और लड्डू खिलाने के बाद लड़के की जान में जान आई। लड़की ने फुसफुसाकर पूछा, तेरी कुड़माई हो गई, लड़का बोला, धत्त, मगर ये कहकर भाग नहीं पाया। जमाना बदल गया है।
कट सीन 3
कुड़माई वाला ये लड़का आपका बैचलर और बना का हुकुम है, जो पिछले सात महीनों से शहर को कभी काक्रोच, कभी कामवाली बाई तो कभी दिल्ली की कहानी सुना रहा है। अरे लड़की से तो मिलवाया ही नहीं, उसका नाम गुंजन है। सिटी ब्यूटिफुल की ही रहने वाली है, फिलहाल दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एमफिल कर रही है इंटरनेशल रिलेशन में। तो ये बैचलर गुंजन से कब मिला? कैसे हुई उनके बीच दोस्ती और फिर कैसी बनी ये जोड़ी। कहानी थोड़ी सच्ची है और थोड़ी शरारती।
कट सीन 4
अगस्त 2006, दिल्ली के एक नामी इंस्टिट्यूट के ऑडिटोरियम में ओरिएंटेशन लेक्चर चल रहे थे। जेएनयू से पढ़कर वहां आया एक लड़का बढ़ चढ़कर सवाल पूछ रहा था, वो भी अंग्रेजी घुली हवा में खालिस हिंदी में। फिर एक लेक्चर के दौरान पिछली रो में बैठे बंगाली बाबा ने प्रेसिडेंसी कॉलेज वाले इस्टाइल में सवाल पूछा,तो लड़के ने पलटकर देखा। मगर तीन सेकंड बाद उसे सुनाई देना बंद हो गया। उन बंगाली बाबा के ठीक आगे वाली रो में एक लड़की बैठी थी। उसने सफेद रंग का कुर्ता पहन रखा था। कानों में पीतल के बड़े बड़े से ईयररिंग थे। मगर ये सब लड़का नहीं देख पाया। वो देख रहा था, तो सिर्फ आंखें। उसे कुछ गुम सा होता लगा। उसने इससे पहले इतनी खूबसूरत आंखें नहीं देखी थीं। आजतक नहीं देखी हैं।
कट सीन 5
कैलेंडर तेजी से फडफ़ड़ाने लगा था। लड़का अब भी लड़की को देखकर कुछ नैनो सेकंड के लिए ही सही गुम हो जाता था। फिर खुद को चिकोटी काटता और सबसे बात करने लगता। उसकी नजर नहीं हटती और लड़की को लगता कैसा ढीठ है, देखे ही जा रहा है। लड़के ने गुम होने के भाव को छिपाना शुरू किया और फिर उसकी लड़की से दोस्ती हो गई। दोनों दुनिया जहान की बहस करते, जेएनयू में घूमते और बस बोलते ही जाते। कोर्स पूरा हुआ, तो लड़का वापस जेएनयू आ गया और लड़की नौकरी करने लगी। मगर दोस्ती बनी रही, मजबूत होती रही।
कट सीन 6
लड़का कांपते हाथों से डायरी लिख रहा है। आज तीन साल बाद उसे एहसास हुआ है कि वो इस लड़की के साथ जिंदगी गुजारना चाहता है। मगर पेन कुछ ठिठका है। लड़का बुंदेलखंड का रहने वाला है, जाति से ब्राह्रमण है। और लड़की, फौजी अफसर की बेटी, वो भी जाट। ये शादी नहीं हो सकती। तमाम कोलॉज कोरे कागज पर बनते। कभी ऑनर किलिंग, तो कभी हैप्पी एंडिंग। फिर लड़का नौकरी करने चंडीगढ़ आ गया। लड़की का घर था इस शहर में।
कट सीन 7
लड़का अंकल के सामने बैठा खाना खा रहा है। इस सेशन के बाद उसकी पेशी होनी है। लड़की ने घर पर बता दिया है। अंकल ने पूछा, तो क्या सोचा। लड़के ने जवाब दिया, माता-पिता ने पाल पोसकर बड़ा किया, काबिल बनाने के लिए सब कुछ किया। उनके आशीर्वाद के बगैर कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। अंकल खुश हो गए। ऑनर किलिंग के बाद जस्टिस फॉर समथिंग समथिंग के लिए सेव की गई फोटो डिलीट कर दी। वैसे लड़की की फैमिली जाट तो थी, मगर बेहद पढ़ी-लिखी और प्रोग्रैसिव भी। मगर डरना जरूरी था न।
कोई कट नहीं
आपके बैचलर की लाइफ का नया फेज शुरू हो चुका है। ये बैचलर वाली टैगलाइन भी बस कुछ महीनों के लिए है। मगर कहानी जारी रहेगी, क्योंकि किस्सों के वर्क में लिपटे सचों से बनती है दुनिया। सलाम दुनिया।
(दैनिक भास्कर के चंडीगढ़ सप्लीमेंट सिटी लाइफ के लिए लिखे गए मेरे वीकली कॉलम शहर और सपना से)
बुधवार, दिसंबर 01, 2010
तेरी कुड़माई हो गई क्या, धत्त
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
super
कुड़माई होने का जमाना है भाइयों का।
एक टिप्पणी भेजें