शुक्रवार, जुलाई 23, 2010

लड़की की चीख, उड़ता लड़का और सांप

सबकुछ तेजी से हो रहा है। जमीन पर अजीब सी कैक्टस उग आई है, वैसी ही कुछ, जैसी मोरनी हिल्स के टॉप पर देखी थी। फिर चितकबरे से लिजलिजे से सांप, जिनसे बचकर भागने की कोशिश। और फिर अचानक उडऩे लगता हूं। ऊंचा बस्तियों के ऊपर से निकलता, सीली हवा को महसूस करता और कभी नीचे आता, तो कभी ऊपर जाता, मगर लगातार भागता।
फिर एकदम से नींद खुलती है, तो देखता हूं कि लैपी के चार्जर की नीली रोशनी के अलावा और कुछ भी नहीं टिमटिमा रहा। हाथ टटोलने पर बोतल नहीं मिलती। कूलर के शोर को चीरती एक आवाज सुनाई देती है। अब नींद कोसों दूर चली गई। जागता हूं तो वो आवाज तेज होती है। सामने के किसी घर से आती घुटी सी चीख। किसी लड़की की या शायद बच्ची की। अंधेरा और सील जाता है।
टाइम हुआ है 2.45 का। उठकर पानी पिया, मगर फ्रिज का ठंडा पानी कोई कितना गटक सकता है। फिर आकर चटाई पर पसर गया। कल क्या क्या काम करने हैं, मां से काफी दिनों से बात नहीं हुई, आगे क्या होने वाला है लाइफ में, सब कुछ कितनी तेजी से हो रहा है न, घर शिफ्ट करना है और ऐसे ही तमाम बुलबुले सेकंडों में टूटकर बिखर जाते हैं और फिर आता है वो ख्याल।
कितने सालों से देख रहा हूं ये सपना। भागता हूं और फिर उडऩे लगता हूं। लगता है कि लपककर मां के पास जाऊं और कहूं देख मां मैं उड़ रहा हूं। सबसे तेज। फिर एकदम से याद आता है कि ऐसी हर उड़ान के पहले सांप दिखाई देते हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि नेवला देखना शुभ है। मैं मजाक में कहता था मैं नेवला हूं। पता नहीं क्यों सांप को देखकर बदन में अजीब सी झुरझुरी दौडऩे लगती है। बस लगता है कि जो कुछ सामने है उससे मार डालो। कभी चप्पल, तो कभी झाड़ू और कभी डंडा से तमाम सांप मार चुका हूं। फिर सांप मर जाता है और मैं सोचता हूं कि ये सांप को देखकर ही ऐसा क्यों होता है।
कूलर का शोर ज्यादा लगता है तो उसे ऑफ कर देता हूं, अब पानी कुछ ठीक हो गया हो शायद, ये सोच फिर चार बूंद गटकता हूं। सांप और सपना, सपना और उड़ान। आखिर कहां रुकेगा ये सब। कितनी बार कितने लोगों से पूछा कि इन सबका कुछ मतलब है क्या। सबने अपने अपने जवाब दिए। मगर सवालों के जवाब नहीं होते, जो होते हैं वे जवाब का भरम देते कुछ छुपे सवाल होते हैं।
आज कितने दिनों बाद तुम वोसब पढ़ रहे हो, जो हमेशा से लिखना चाहता था। मकान की चिखचिख, रोजमर्रा की लाइफ और इन सबसे परे बसा सच। सीली रातों और तपती दोपहरों की कहानी। अच्छा ये सोचो कि जो लड़की चीख रही थी, उसकी क्या कहानी रही होगी। क्या वो भी अपने सपनों में कुछ देखती होगी। जब छोटा था, तब कुछ ड्रीम एनैलिस्ट का नाम अपनी डायरी में लिख रखा था। सोचा था बड़ा होकर ऐसा ही कुछ करूंगा। क्या किया, उसका तो नहीं पता, मगर सपने इधर जरूर कुछ कम हो गए थे। लोग कहते हैं कि सपनों के बिना नींद अच्छी होती है, मगर मैं हर रात इस लालच में सोता था कि आज कुछ नया देखेंगे और भरपूर कोशिश करेंगे कि याद रखें। कई बार सपने का वो गुदगुदाता सिरा बस हाथ में आते आते रह जाता।
अब नींद आती नहीं है, लानी पड़ती है, सांप और उड़ान कहीं दूर चले गए हैं, एक रात है, जिसके सिरे की तलाश जारी है।

4 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

... behatareen !!!

गजेन्द्र सिंह भाटी ने कहा…

"लोगों के घर में रहता हूं, मेरा कब अपना घर होगा".. बेहतर है.. "लड़की की चीख, उड़ता लड़का और सांप से"। कभी शायद रूसी साहित्य पढ़ा था। हालिया लेख में उसकी झलक मिलती है। लगता है अपनी जिंदगी के अलग-अलग आकार और वक्त के धागों को एक साथ बुन देने की कला आप जानते हैं। मैं पढऩे वाला, अगर चाहूं तो किसी फिल्म की रील मन में बुनते इस लेख के शब्दों के साथ चल सकता हूं।

विवेक ने कहा…

यूं लगा कि रात मुझे सोता छोड़ तुम्हारे पास चली गई और सब बता आई तुम्हें जो मैं उससे कहता था...

Unknown ने कहा…

badhiya