मुंबई की तंग गलियों से बॉलीवुड के कैमरे को छिछोरा रोमैंस हो गया है। इसीलिए तो हर दूसरी फिल्म में ये वहां की तंग गलियों और चुस्त लिबासों के पीछे मंडराता नजर आता है। मगर लुच्चों की टोली में एक ही हीरो होता है, बाकी सब छिछोरे। वैसे ही कैमरे की ये कारीगरी शैतान या आमिर या दूसरी फिल्मों में तो अच्छी लगती है, मगर भिंडी बाजार में ये फॉम्र्युले से बंधी लगने लगती है। कैमरे की तरह कहानी भी एक फ्रेम में फिक्स की गई है। इस फिल्म में इतने ज्यादा रेंज वाले शानदार एक्टर्स की भरमार थी, मगर आखिर में सब कुछ जीरो बटा सन्नाटा साबित हुआ।
बरबादी का बेहतर नमूना
गुलाल के पीयूष मिश्रा यहां तबेला छाप गैंगस्टर पांडे बने हैं। उनके हिस्से कुछ होंठ जबाऊ, आंख को हल्के से मींचकर बोले जाने वाले डायलॉग आए हैं। के के मेनन पूरी फिल्म में सीटी बजाते सुर में चेस खेलने के दौरान वन लाइनर मारते दिखते हैं। शिल्पा शुक्ला कजरी के रोल में शुरू में कुछ कच्चापन और अल्हड़पन दिखाती हैं, मगर बाद में कहानी ऐसी भटकती है कि उनके लिए गुंजाइश नहीं बनती। ये वही शिल्पा हैं, जो चक दे इंडिया में बिंदिया नायक के किरदार की कुंठा, प्रतिभा और स्पर्धा को ऐसे जीती हैं कि शाहरुख के साथ साझा फ्रेम बराबरी पर छूटता है। फिल्म में सबसे ज्यादा रील हिस्से आई है प्रशांत नारायण और गौतम शर्मा के। प्रशांत नारायण के सांवलेपन में एक सुरमे जैसा स्याह सम्मोहन है। यहां फतेह के रोल में उन्होंने दमखम दिखाई है। मगर तेज के रोल में गौतम बहुत सपाट चेहरे के साथ सामने आते हैं। पवन मल्होत्रा को भाई के रोल में हम इतना देख चुके हैं कि अब लगता है जैसे किसी पुराने फिल्म का सीन देख रहे हों। हर बार ब्लैक फ्राइडे के टाइगर भाई का एटीट्यूड ही याद आता है उन्हें देखकर। दीप्ति नवल के हिस्से कुछ सादगी और कुछ बेचारगी आई थी। दीप्ति की एक्टिंग स्किल पर टिप्पणी करने का अभी मेरा दर्जा नहीं, मगर अफसोस कि फिल्म इतने ज्यादा किरदारों को संभालने में इतनी बिखर गई थी कि उनकी अधेड़ कुंठा और प्रतिकार अंधेरे में गुम गया। जैकी श्रॉफ क्लाइमेक्स से पहले पासिंग रिफरेंस में दिखते हैं और आखिरी में बीड़ू स्टाइल में आते भी हैं, तो बस यही लगता है कि न ही आते तो उनके लिए अच्छा होता।
ये इतने सारे सितारों का बैकग्राउंड इसलिए बताया ताकि अपनी बात को वजन दे सकूं। भिंडी बाजार में एक से बढ़कर एक एक्टर थे, मगर कैरेक्टर एक भी ऐसा नहीं बन पाया, जिसे आप हफ्ते क्या कुछ दिन भी याद रखें। भिंडी बाजार में भीड़ है, माल है, मगर एक भी माल ऐसा नहीं, जिस पर दाम लगाया जा सके।
कहानी घिसी पिटी
एक गैंगस्टर फिल्म में क्या तत्व हो सकते हैं। दो युवा, जिनके बीच देर सवेर महत्वाकांक्षा की, बादशाहत की लड़ाई होनी है। ज्यादातर मामलों में इन्हें शुरूआत में दोस्त दिखाना मुफीद रहता है। जैसे कंपनी में मलिका और चंदू या फिर वंस अपऑन ए टाइम इन मुंबई में सुल्तान मिर्जा और शोएब खान के केस में आप इस फंडे को हिट होते देख चुके हैं। मगर यहां फतेह और तेज के बीच कोई कैमिस्ट्री ही नहीं दिखती, तो लास्ट में उनकी आपसी दगाबाजी भी कैसे चौंकाएगी। आइए कुछ और तत्वों के बारे में सोचते हैं। माफिया की रिश्तेदार होगी, जिसके साथ नए लौंडे का चिलमन के पीछे इश्क जमेगा, कुछ भ्रष्ट पुलिस वाले होंगे, एक बड़ा माफिया होगा, मुंबई के बेरोजगार छोकरे होंगे, गलियों में कुछ चेज सीन, एक दो आईटम नंबर, उसूल वुसूल की कुछ बातें और लास्ट में सब खल्लास। भिंडी बाजार में भी यही सब है।
ये इलाका पॉकेटमारों का अड्डा है, यहां मामू बोले तो लोकल डॉन बनने की फाइट है। मामू हैं पवन मल्होत्रा और उनके गुर्गे हैं प्रशांत नारायण, शिल्पा शुक्ला, गौतम शर्मा वगैरह। उधर पीयूष मिश्रा के गैंग में भी कुछ छुटभइये एक्टर हैं। मामू का अपनी रिश्ते की साली से लफड़ा, जो उनकी बीवी दीप्ति नवल यानी बानो को बुरा लगता है। साली को लेकर फतेह भी सेंटी है, मामू मरता है, फिर कुछ और लोग मरते हैं फिर पीयूष यानी पंडित मरता है और फिर सब मर जाते हैं अच्छी क्राइम माफिया थ्रिलर की तरह। फिल्म में सिमरन हैं, बस में सफर करने और घटिया से क्लाइमेक्स को पूरा करने के लिए। वेदिता प्रताप सिंह हैं शबनम के रोल में तंग कुर्ते में क्लीवेज दिखाने और सेक्स सीन की रस्म पूरी करने के लिए। और इस टाट में एक और पैबंद है जबरन ठूंसा कैटरीना लोपेज का आईटम नंबर।
तो फिर क्या करें
माफिया कहानियां बहुत पसंद हैं, तो मत जाइए, टेस्ट खराब होगा। बाकी कुछ ही महीनों में फिल्म किसी टीवी चैनल और डीवीडी पर आ ही जाएगी। भिंडी बाजार से मुझे बहुत उम्मीदें थीं, मगर ये उस फल की तरह निकली जो बाहर से सुर्ख लाल है और अंदर से सड़ा। पीली हरी रोशनी, नैरेशन की अझेल स्टाइल, जिसमें शतरंज की बिसात के साथ कहानी आगे बढ़ती है, सब कुछ जबरन ठूंसा लगता है। कहीं कहीं कुछ स्पार्क दिखता है, मगर वो फॉल्ट किए तार का स्पार्क है, बत्ती नहीं जलेगी इससे।
शुक्रवार, जून 17, 2011
बहुत भड़भड़ है भिंडी बाजार में
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