मुझे इस देश का पीएम बनना है और मुझे लगता है कि ये इस देश का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे मुश्किल काम होगा। मगर मैं गलत हूं। आप भी मेरी बात मान जाएंगे, इस लिस्ट को पढऩे के बाद। मैं पिछले एक महीने से अपना फ्लैट सेट करने की कोशिश कर रहा हूं और इसी दौरान मुझे दुनिया के इन सबसे मुश्किल कामों के बारे में पता चला।
रोटी गोल कैसे होती है
हमारे फ्लैटमेट हैं मंकू जी। उन्हें दस हजार बार समझाया कि रोटी का आटा गीला नहीं करते। मुझे याद है मां भी यही बताती थी। मगर मंकू जी मानते ही नहीं। फिर और आटा डालना पड़ता है। मंकू जी के दोस्त हैं चंपू जी। वो भी आ जाते हैं कई बार रोटी बनते वक्त। रोटी बनाने का काम मेरा है। कभी लोई में आटा ज्यादा लग जाता है, कभी इतना कम कि रोटी बेलते वक्त चिपकने लगती है। और हां गोल, अभी तक बनाई कई सैकड़ा रोटियों में आठ-दस गोलाई पाते-पाते रह गईं। तो रोटी बेलना और वो भी गोल अमेरिका को खोजने जितना महान काम है। मां को कितनी आसानी होती है न इस काम में।
सारी सब्जियों का एक ही फॉम्र्युला
अभी मैं किचेन से बाहर नहीं निकल पाया हूं। मंकू जी सब्जी बनाएं या चंपू जी या फिर मैं, सबका एक ही सुपरहिट फॉम्र्युला है। प्याज, लहसुन, टमाटर और हरी मिर्च काटी। तेल गरम किया, हींग, जीरा डालकर ये सब सामान भूंजा। फिर हल्दी, धनिया पाउडर और गरम मसाला भूना और फिर सब्जी उड़ेल दी। गौर करिए, सब्जी चाहे भिंड़ी हो चाहे करेला, हमारा बनाने का तरीका यही रहता है। दाल में भी तड़का डालना हो तो सब्जी की जगह बस दाल डाल देते हैं। तो मुश्किल काम है सब्जियों के हिसाब से मसालों का कॉम्बिनेशन चेंज करना। हमारे किचेन में भी बहुत सारे मसाले हैं, थैंक्स टु रेनू ऑन्टी, मगर अभी उनके साथ एक्सपेरिमेंट की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
कामवाली बाई का बवाल
एक अच्छी टाइम पर आने वाली, बहाने न करने वाली कामवाली बाई बहुत नसीब वालों को मिलती है, ये मैं अपने आप से रोज सुबह कहता हूं। फिर ये भी कहता हूं कि मैं नसीब वाला हूं, मगर उसे मैंने जॉब पाने और दूसरी चीजों में खर्च कर दिया है। पहली काम वाली बाई आईं, लैंड लॉर्ड के यहां भी वही काम करती थीं। दो दिन बाद अंकल-ऑन्टी गए, अगले दिन से बाई जी भी गईं। फिर पूरे 12 दिन बाद आईं। क्यों नहीं आईं। बेटी की तबीयत खराब थी। अरे कम से कम एक बार आकर बता तो दिया होता। फिर दो दिन पहले फस्र्ट फ्लोर पर रहने वाली भाभी जी के यहां आने वाली बाई जी को बोला। तैयार हो गईं। मगर दो दिन हो गए, अभी तक डोरबेल नहीं बजी। मंकू जी और मैं बर्तन धो डालते हैं। मगर कभी-कभी लगता है कि काश एक बाई जी फटाफट बर्तन धोतीं, तो हमें सिर्फ खाना बनाना पड़ता। और हां घर भी हफ्ते में दो-तीन बार ही साफ होता है इसी वजह से। टाइम से आने वाली बाई ढूंढऩा वाकई मुश्किल है।
छोटा काक्रोच, मोटा काक्रोच
बरसों पहले कानपुर में रहता था और खूब काक्रोच मारता था। फिर दिल्ली में रहा तो काक्रोच दिखने ही बंद हो गए। सोचता था शायद म्यूजियम जाकर देखना पड़े। मगर आपको ऐसा नहीं करना पड़ेगा। मेरे घर आइए न, हर वैरायटी और साइज का काक्रोच मिलेगा। दरवाजे के पीछे, बेड के नीचे। डे वन से ही पूरी बिरादरी से मेरी और मंकूजी की दोस्ती हो गई। फिर लक्ष्मण रेखा भी लाए और उसे लगाया भी, मगर काक्रोच तो रावण के भाई बंधु, रेखा को भी गच्चा दे गए। मंकूजी काक्रोच की लाशें उठातें हैं और मैं उन्हें ठिकाने लगाता हूं। पुण्य का काम है भाई। आपने किया है कभी। सुबह उठकर और रात में टहलकर इन्हें मारने का पुण्य भी मैं ही करता हूं।
तो ये दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से कुछ हैं, बाकी की लिस्ट अगले हफ्ते। तब तक चिल मारो चंडीगढ़
from my column sahar aur sapna for dainik bhaskar, chandigarh
बुधवार, मई 12, 2010
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2 टिप्पणियां:
he he he...sahi hai lage raho.roti ko gol karne aur punya kamane mein......
he he he...sahi hai lage raho.roti ko gol karne aur punya kamane mein......
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