क्यूट बोलते हैं न जिसे, वही दिखती है वो, छोटी सी, प्यारी सी और चहकती सी। आंखों में शरारत भरकर बोलती, कैसे हैं आप? तो शनिवार को जब ऑफिस से घर पहुंचा तो थका था और थोड़ा मायूस भी। एक और वीकएंड आ गया था, जब मेरे पास करने को कुछ नहीं था। दिल्ली में तो पता भी नहीं चलता था कि संडे कब फुर्र हो गया। चेंज किया और लैपटॉप ऑन किया, तभी एक दोस्त का फोन आया, क्या कर रहा है। बैठा हूं, आजा सेक्टर 32 में। फिर क्या अपन ग्लैड होकर स्कूटर पर सवार हुए और पहुंच गए। वहां लड़कियां भी थीं और लड़के भी। लड़कियां कुछ डरी थीं। किसी को हॉस्टल टाइम से जाना था और किसी को घर पर बताना था। फिर उन्हें समझाया कि हम हैं न, टाइम से घर छोड़ देंगे। अभी परेशान मत हो और आराम से खाना फिनिश कर लो। मगर उस क्यूट सी लड़की के चेहरे से चिंता जा ही नहीं रही थी। फिर उसको गौर से देखने लगा। इतनी पवित्र दिख रही थी वो उस वक्त उस डर के साथ भी।
फिर ग्रुप में किसी ने ट्रिक बताई कि कार में जाकर घर फोन करो। शोर नहीं रहेगा उस वक्त। बोल देना घर पहुंच गई। ऐसा ही हुआ और फिर अगले आधे घंटे में सबने आराम से मस्ती मारते हुए डिनर फिनिश किया और अपने-अपने घर गए। मगर मैं वहीं रह गया, अपने सवालों के साथ।
लड़कियों को, उन पवित्र चेहरों को समाज, परिवार, लोग क्या कहेंगे, इन तमाम वजहों की वजह से डरना क्यों पड़ता है। क्यों ये प्यारी लड़कियां झूठी लड़कियों में तब्दील हो जाती हैं।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पिछले आठ-दस सालों से देख रहा हूं। दोस्त के साथ कॉफी पीने जाना है, मगर घर पर बोलना पड़ता है कि सहेली के घर जा रही हूं। मूवी डीवीडी खरीदनी है या फिर फॉर ए चेंज पार्लर में कुछ एक्स्ट्रा खर्च करना है, तो घर पर बोलना कि गाइड लेनी है। और और और किसी लड़के से प्यार करना है, उसके साथ जिंदगी बिताने का फैसला करना है, तब भी घर पर झूठ बोलने की मजबूरी। ये लड़कियां मेरे आसपास की, लगातार झूठ बोल रही हैं, घर से और कभी-कभी खुद से भी।
मेरी एक दोस्त लेस्बियन जैसी कुछ है। जैसी कुछ इसलिए क्योंकि वो अपनी सेक्सुअल आइडेंटिटी को लेकर कन्फ्यूज है। वो बहुत-बहुत अच्छी पेंटिंग्स बनाती है और लिखती भी उतना ही अच्छा है। मगर इस फैक्टर को वो अपनी फैमिली के साथ शेयर नहीं कर सकती। एक दोस्त एक लड़के से बहुत प्यार करती है, मगर फैमिली को नहीं बता सकती क्योंकि फैमिली उसके फैसले पर एक सेकंड में सवालिया निशान लगा देगी। ज्यादातर लड़कियां किसी से प्यार करती हैं, किसी का साथ चाहती हैं और ये फैसले उन्होंने सोलह बरस के लड़कपन में आकर नहीं लिए, पूरे होशोहवास में लिए। उन तमाम दोस्तों के फैसलों में मच्योरिटी झलकती है, मगर फिर लगता है कि इस सही फैसले के लिए भी झूठ की आड़ क्यों।
ये अच्छे घर की लड़कियां हैं, हमारे आपके घरों की लड़कियां हैं और ये अपने मां-बाप से बहुत ज्यादा प्यार करती हैं। इन्हें पता कि मां-पापा ने बहुत अरमानों से पढ़ाया है और हमें उनकी मेहनत, उनके विश्वास को कायम रखना है। मगर साथ में ये लड़कियां किसी के साथ जीना चाहती हैं और आगे बढऩा चाहती हैं। ये अपने हिस्से की मस्ती, धूप, छांव में भीगना चाहती हैं। और सबसे बड़ी बात ये अपने हिस्से की गलतियां भी करना चाहती हैं।
मगर हम उनके दोस्त, भाई, बाप, बॉयफ्रेंड, उन्हें ये सब नहीं करने देना चाहते। हमें लगता है कि हम ज्यादा समझदार हैं और हमने दुनिया देखी है। देखी है, तो उन्हें भी उनके हिस्से की दुनिया देखने दें न। लड़कियां गजब की होती हैं, हर पल चौंकाती, हंसाती-रुलाती। मगर वे झूठी नहीं होतीं। उन्हें झूठ बोलना पड़ता है क्योंकि वे बैलेंस बनाने की कोशिश करती हैं, क्योंकि वे परवाह करती हैं, प्यार की भी और परिवार की भी। आपने किसी झूठी लड़की का सच जानने की कोशिश की है क्या?
गुरुवार, जून 17, 2010
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