मौत क्या करती है, आपको दार्शनिक बना देती है, भीतर कुछ सूखने सा लगता है, कुछ मरने सा लगता है। ऐसा लगता है कि जो मरा, उसके साथ आपकी हरहराती जिंदगी का भी एक टुकड़ा मर गया। पिछले कुछ दिनों से आप दिल्ली में काम करने वाली एक पत्रकार निरूपमा पाठक की मौत से जुडी़ खबरें पढ़ रहे हैं। मैं निरूपमा को जानता था। बहुत तकलीफ हो रही है पिछले वाक्य में है की जगह था लिखकर। उस लड़की ने हमेशा मुस्कराकर हैलो सर बोला था और हमने डेढ़ साल में कुल जमा 100 सेंटेंस भी नहीं बोले होंगे आपस में। उसकी मौत से चंद हफ्तों पहले फोन पर बात हुई थी। तब तक वो शादी का फैसला कर चुकी थी। मैंने सिर्फ यही कहा कि बडा़ फैसला है सोचकर करना और करना तो उस पर कायम रखना। उन दिनों भोपाल में था। नीरू को परिवार की कमी न अखरे, इसलिए दिल्ली अपनी बहन को फोन किया और कहा कि एक सुहाग के रंग की साड़ी खरीदना। एक लड़की अपना प्यार पा रही है। मगर शादी नहीं हुई क्योंकि नीरू के पिता का खत आ गया था, जिसमें उसे अपने प्यार और सनातन धर्म का वास्ता दिया गया था। फिर एक दिन नीरू दिखी, मगर उसे बुलाया नहीं। वो भी शायद नजर बचा रही थी। मुझे लगा उलझन में होगी, फिर बात करूंगा। अब कभी बात नहीं कर पाऊंगा उससे, अब हमेशा उसकी बात करूंगा और हां मेरी अल्मारी में रखी नीरू की साड़ी सुहाग के रंग से धीमे-धीमे खून के रंग में तब्दील होती लग रही है।
ऑफिस में काम कर रहा था, जब उसके मरने की खबर मिली। दिमाग सन्नाटे में आ गया। फिर अगले दिन पता चला कि उसने स्यूसाइड किया है। सुनकर अजीब लगा, आखिर क्या वजह रही होगी उन चमकीली आंखों के हमेशा के लिए बंद हो जाने की। फिर अगले रोज एक मित्र ने नीरू की दो तस्वीरें भेजीं। सॉरी उसकी लाश की दो तस्वीरें भेजीं। एक घर में लेटी हुई, दूसरी पोस्टमॉर्टम हाउस में। उसने उसी लाल रंग की टीशर्ट पहन रखी थी, जैसा रंग बौद्ध भिक्षु पहनते हैं। शांति का रंग। टीशर्ट जैसा एक लाल रंग उसकी गर्दन पर भी था। बाद में पता चला कि नीरू को गला दबाकर मारा गया और बाद में स्यूसाइड दिखाने के लिए फांसी पर लटकाने की कोशिश में ये निशान बना।
रात में पानी पीने उठता हूं, दिन में लैपटॉप ऑन करता हूं, शाम को कुछ सोचते हुए काम से जूझता हूं, बार-बार वो लाल निशान मेरी आंखों को पहले गीला और फिर लाल कर जाता है। ये लिखते हुए भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।
नीरू मरी तो तमाम लोगों की पकी हुई नींद टूट गई। अगर पत्रकारों के साथ ऐसा हो सकता है, तो फिर बाकियों की बिसात क्या। और ध्यान रहे ये अपराध हरियाणा की किसी खाप पंचायत ने नहीं सो कॉल्ड मिडल क्लास वेल एजुकेटेड फैमिली ने किया। फिर नीरू के गर्भवती होने को लेकर भी बहस शुरु हो गई। अदालतें बैठेंगी, किसी को जमानत मिलेगी तो किसी को सजा। उसके प्रेमी की जिंदगी भी आगे बढ़ जाएगी और मेरी भी।
मगर उस लाल रंग को देखते ही जो निशान आंखों के सामने तैरने लगेगा उसका क्या? मेरी अल्मारी में रखी उस लाल साड़ी का क्या, जो नीरू के लिए ली थी। नीरू बहुत नीर पाया तुमने और हमने भी।
गुरुवार, मई 06, 2010
लाल साड़ी तुम्हारा इंतजार कर रही है नीरू
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3 टिप्पणियां:
हम रोज करते हैं अपने जमीर की हत्या। और फिर दंभ भरते हैं अपने जिंदा होने का। हम रोज लेते हैं शपथ - जिंदा रहने का, और अगले ही पल मार देते हैं शपथ की गरिमा। यारो, यह जो मातमी सन्नाटा बुनता है हमारा अहं, इसे क्यों रखते हैं हम सदियों तक जिंदा। क्यों नहीं दफन कर पाते अपनी दुविधा कि अब अंधेरे को हम अंधेरा ही कहेंगे। कि अब किसी नीरू को नहीं होने देंगे बाध्य। कि अब वह अपने किसी बाप-मां-भाई-बहन-चाचा के पास जाकर न मांगे इजाजत। कि वह कर सके कोई भी फैसला। हां साथी, अब कोई नीरू की न हो मौत इसलिए जरूरी है कि फैसला करें हम कि दुविधाओं के बीच जीना हम छोड़ दें...
हम रोज करते हैं अपने जमीर की हत्या। और फिर दंभ भरते हैं अपने जिंदा होने का। हम रोज लेते हैं शपथ - जिंदा रहने का, और अगले ही पल मार देते हैं शपथ की गरिमा। यारो, यह जो मातमी सन्नाटा बुनता है हमारा अहं, इसे क्यों रखते हैं हम सदियों तक जिंदा। क्यों नहीं दफन कर पाते अपनी दुविधा कि अब अंधेरे को हम अंधेरा ही कहेंगे। कि अब किसी नीरू को नहीं होने देंगे बाध्य। कि अब वह अपने किसी बाप-मां-भाई-बहन-चाचा के पास जाकर न मांगे इजाजत। कि वह कर सके कोई भी फैसला। हां साथी, अब कोई नीरू की न हो मौत इसलिए जरूरी है कि फैसला करें हम कि दुविधाओं के बीच जीना हम छोड़ दें...
पता नहीं क्यों पर मुझे भी क्यों लगता है कि एक लड़की जिसे मैं कभी जानता ही नहीं था उसके दर्दनाक अंत का दुख भीतर तक महसूस करता हूं। किसी ब्लॉग पर ही उसके भीतर पल रहे जीवन के बारे में भी पढा। अगर ये हत्या है तो दोहरी हत्या है ।
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