शाम का एक ही रास्ता था। सीढिय़ां चढ़ता और अपर्णा मैम मुस्कराते हुए दरवाजा खोलतीं। झुककर पैर छूता तो कहतीं खुश रहिए। उस आवाज में नेह था। फिर हम उनके घर के खुले बरामदे में बैठ जाते। अपनी पढ़ाई की बात करता। वो सलाह देती जातीं। मैं उत्साह में बकबक करता रहता और वो आंखों में मुस्कान समेटे सुनती जातीं। जब वो घर के काम में बिजी हो जातीं, तो मैं सामने के मैदान को ताकने लगता। पुराना बरगद का पेड़, उसके सामने पड़ी जंग खाती जीप और इक्का-दुक्का टहलते जानवर। फिर कुछ बेचैनी होती तो किनारे रखे तुलसी के पौधे पर हथेलियां घुमाने लगता। उन दिनों बहुत परेशान रहता था। प्लस टू तक कानपुर में पढ़ा था, मगर फिर कुछ ऐसे हालात हुए कि अपने कस्बे उरई वापस लौटना पड़ा। मैथ्स के रजिस्टर के बीच में रखकर कॉमिक्स और नॉवेल पढ़ता था। इससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि मैं साइंस में कितना इंटरेस्टेड था। फिर थर्ड ईयर तक आते-आते घर कैदखाना लगने लगा और पनाह लेने आ जाता, इस कोने में। फिर कॉलेज के प्रफेसरों ने जेएनयू के बारे में बताया और अपने राम तैयारी में जुट गए। मैम खूब मदद करतीं, मैं उनसे बहस करता और जब बहस टॉपिक से इधर-उधर भागने लगती, तो वे उसे फिर से ट्रैक पर ले आतीं। मैं बहुत बोलता था, वो बहुत सुनती थीं और कम बोलती थीं, मगर उनके बोले एक-एक शब्द मुझ पर असर करते थे।
फिर अप्रैल आते-आते किसी बात पर मां-पापा से डांट पड़ी। मैं बागी था, तो घर में एक अबोला सा कायम हो गया। भाई से भी किसी बात पर लड़ पड़ा और फिर घर बस एक पिंजड़ा लगा, जिससे हर हाल में दूर भागना था। उन्हीं दिनों मेरा जन्मदिन आया। मैम ने अपने घर बुलाया और एक चमकीली इंक वाला पेन और डायरी दी। उसके पहले पेज पर लिखा - तुम्हारी नई दोस्त, जिसमें तुम अपनी कामयाबी दर्ज कर सको। नीली चमकती स्याही में लिखे वो शब्द आज भी आंखों में झलकते हैं। मैंने खूब मन से तैयारी की, सामने वाले मंदिर में बसे शिव जी को खूब पानी पिलाया और एग्जाम देने लखनऊ पहुंच गया। पेपर देखती ही हंसी आ गई। गिने-चुने सवाल ही तैयार किए थे और वही सामने छपे थे। एक भी शब्द लिखे बिना अपनी बगल वाली रो में बैठे दोस्त से बोल बैठा, मेरा हो गया। तब इतनी समझ भी नहीं थी कि जेएनयू का एंट्रेंस बहुत मुश्किल होता है। कुछ एक दिन लखनऊ कानपुर रुककर वापस आया, तो शाम को मैम से मिलने पहुंच गया। उन्हें दोस्त के जरिए पहले ही पता चल गया था कि मेरा एग्जाम अच्छा हुआ है। जैसे ही मैंने घर पहुंचकर उनके पैर छुए, उन्होंने कुछ गीली-कुछ भीगी आवाज में खुश रहिए के बजाय कहा - तो एक और पक्षी प्रवासी हो गया। मेरी भी आंखें गीली होने लगीं। मैंने माहौल हल्का करने की गरज से कहा, अरे कहां मैम, अभी तो एग्जाम दिया है, देखिए रिजल्ट क्या आता है। मगर कुछ ही मिनट बाद उन्हें पूरे उत्साह के साथ बताने लगा कि इस क्वेश्चन में मैंने ये लिखा, उसमें वो लिखा।
जब रिजल्ट आया, तो मैं दिल्ली में ही था। सीडीएस का रिटेन एग्जाम क्लीयर कर चुका था और एसएसबी के लिए कोचिंग कर रहा था। जनरल में पंद्रह सीटें थीं और मेरा लास्ट नंबर था। फोन पर एक कजिन ने रिजल्ट बताया तो समझ नहीं आया क्या करूं। गला सूखने लगा। कई बार सीढिय़ों से गिरते-गिरते बचा। फिर बूथ पहुंचा और जितने नंबर याद थे, सबको फोन घुमा दिया। मगर मैम को फोन करने की हिम्मत नहीं हुई। भाई से बोला, आप बता देना।
फिर एक शाम मिठाई का डिब्बा लेकर उनके घर पहुंचा। इस बार मेरी आवाज प्रणाम बोलते हुए गीली हो रही थी। उन्होंने सिर पर हाथ रखा, तो रुलाई छूट गई। मैंने कहा था न, एक और पक्षी प्रवासी हो गया, उन्होंने कहा। मैं बस मुस्करा दिया।
जेएनयू आया तो एक नई दुनिया से पाला पड़ा। पहले सेमेस्टर से ही लाइब्रेरी से यारी कर ली। जब छुट्टियों में घर जाता, तो उनसे मिलने पहुंच जाता। मैंने ये पढ़ा, आपने उसका नाम सुना है, ये किताब जरूर देखिएगा। मैं अधभरे घड़े की तरह चहकता और बताता और वो आंखों में खुशी भरे सुनती रहतीं। फिर धीमे-धीमे ये सिलसिला कुछ कम हो गया। वो अपनी जगह व्यस्त, मैं अपने काम में मस्त। हां, जब भी घर जाता, एक बार उस कोने में जरूर जाता।
उनकी शादी हो गई। कभी फोन पर लंबी बात होती, कभी महीनों कोई संपर्क नहीं। पिछले दिनों उन्हें एक प्यारा सा बेटा हुआ। उसका नाम शांतनु है। मुझे ये सब पता है थैंक्स टु फेसबुक। किनारे एक तस्वीर देखी पिछले दिनों। बिल्कुल मम्मी के टाइम जैसे फोटो फ्रेम होते न, वैसी तस्वीर। ये मेरी अपर्णा मैम थीं। फिर बात शुरू हुई और पहले ही दिन बहस अटक गई रावण फिल्म पर। मैं उन्हें तमाम तर्क देता रहा, जब तक शांतनु जाग नहीं गया और आखिरी में उन्होंने मान लिया कि तुम जीत गए, मैंने मान लिया कि इसका क्लाइमेक्स बहुत मीनिंगफुल है। ये कहकह मैम तो चली गईं, मगर मुझे अपनी जीत सुनकर कुछ हारा हुआ सा लगने लगा। मैं कुछ भी कर लूं, कितना भी पढ़ और समझ लूं, मैम से कभी नहीं जीतना चाहता।
उस घर के कोने में अब भी शाम उतरती होगी। तुलसी अब भी हवा के साथ हिलती होगी। जीप अभी भी बारिश में भीगकर और जंग खा रही होगी। उस कोने में अभी भी मेरी कुछ यादें सुस्ता रही हैं। ये पक्षी वहां जाकर कुछ देर बैठना चाहता है। सुनना चाहता है- खुश रहिए।
गुरुवार, अगस्त 19, 2010
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3 टिप्पणियां:
जानता हूं...प्रवास उदासी का सर्वनाम है शायद...और शाम अकेलेपन का पर्यायवाची...फिर जिंदगी की ग्रामर में नंबर कम क्यों आते हैं...
बहुत अच्छा कहा तुमने.
एक अच्छी कल्पना है धन्यवाद्|
भिगो दी न आँखें ! इत्ता अच्छा कैसे लिख लेते हो ? इतना सुन्दर-सुन्दर पढने के बाद मेरे पास कुछ कहने को बचा ही क्या है.............सिवाय इसके कि खुश रहिये। मुझे पता है कि सफलता के हर शिखर पर कदम ज़रूर रखोगे।
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