जिंदगी अजीब होती है न। एक पल किसी को कुछ समझाता और दूसरे ही पल खुद उसी चीज को समझने की कोशिश करता। मेरी एक दोस्त है। उसका नाम आशिमा है। दिल्ली में है और थिएटर कर रही है। इंस्टिट्यूट में मुझसे तीन साल जूनियर थी। तो मैं वहां हर साल अपने जूनियर्स से मिलने जाता था। पिछले साल गया तो उससे भी मुलाकात हुई। फिर फेसबुक पर दोस्ती। चुलबुली सी है और फेसबुक के किसी भी अपडेट पर फौरन कमेंट करती। मुझे लगा यूं ही कमेंट कमेंट में बात करती रहेगी झल्ली। उससे कहा अपना जीमेल आईडी बताओ। उसने आईडी एक सवाल के साथ दिया। क्या हुआ सर, कोई गलती हो गई क्या, मेरी डांट तो नहीं पड़ेगी। मैंने कहा नहीं। फिर जीटॉक पर बात होने लगी। पूरी नौटंकी है ये लड़की। कुछ भी बात करो, कहेगी सर मेरी तो हो गई सारारारा। एक नया जुमला भी सिखाया उसने मुझे - यारा, अभी तक यार सुना था, मगर ये क्यूट झल्ली जब बहुत रिदम में होती तो यारा बोलती। प्ले का रिहर्सल हो या फिर रात में एक बजे उठकर मम्मी को बताए बिना मैगी बनाना, यारा छोटी-छोटी चीजें शेयर करती। टाइम से जवाब नहीं दो, तो खूब खीजती। जब मूड में होती, तो बोलती ही रहती। मगर इधर तीन दिनों से चुप थी। मैं भी वीकएंड पर दिल्ली गया था, तो इंटरनेट से कुछ दूर ही रहा। कल रात ऑफिस से लौटा, तो उसने पिंग किया, आप मुझसे नाराज हो क्या, मैंने कहा नहीं। फिर नॉर्मल बात शुरू हो गई।
मगर कुछ ही देर में वो रोने लगी। उसने खुद ही बताया। मैंने पूछा क्या हुआ, तो बोली यारा, मेरा तो प्यार से और ऐसी ही तमाम चीजों से यकीन उठ गया है। फिर खुद ही सुबकते हुए बताने लगी कि मेरा एक दोस्त था। पिछले एक साल से मेरे सामने कुछ और दिखावा कर रहा था और असलियत कुछ और थी। कुछ दिनों पहले मैंने उसका झूठ पकड़ लिया। तबसे सदमे में हूं। मेरे लिए प्यार विश्वास का नाम है, मगर उसने मेरे विश्वास को तोड़ा है। चैट की लिंगो में मैं हर सेंटेंस के बाद हमममम करता रहा। फिर उसे समझाने की कोशिश की, कि जीना इसी का नाम है। अलग-अलग लोग, अलग-अलग सबक। मैं ये नहीं कहता कि तकलीफ होने पर रोओ मत, मगर तकलीफ को अपने घर में ठिकाना मत बनाने दो। बुरे वक्त को बीत जाने दो। उसने कहा कि इस तरह की बातों से कोई मदद नहीं मिलती। तो मैंने उसके साथ अपना मंतर शेयर किया।
इसे पिछले कुछ हफ्तों से ट्राई कर रहा हूं और अभी तक इससे काफी मदद मिली है। जब भी बहुत जोर से खीझ उठे, गुस्सा आए, दीवार पर सिर मारने का मन करे या फिर लगे कि सब कुछ मेरे साथ ही गलत क्यों होता है, तो इसे ट्राई कर सकते हो। लंबी सी सांस खींचो और खुद से कहो, आई लव लाइफ। अब याद करो कि लाइफ के पिछले कौन से हैपी मोमेंट्स थे, जो बिना दरवाजा खटखटाए तुम्हारे पास चले आए थे। तब तुम सरप्राइज्ड हुए थे, ठीक से मुस्कराए थे और फिर चुप हो गए थे। तब तो यही लाइफ अच्छी थी न। मगर लाइफ अच्छी होती है, क्योंकि इसमें वैरायटी होती है, कभी खुशी तो कभी कोई सबक चुपके से आ जाता है। तो फिर शिकायत कैसी। उस बंदे के दिखावा का तुम्हें पता चल गया, ये कुछ कम है क्या। अब सांस भरो और खुद से फुसफुसाकर कहो, आई लव लाइफ। कुछ लोगों को इसमें ऑल इज वेल की टोन सुनाई दे सकती है, तो प्यारों मंतर तो दुनिया का एक ही है, कि स्ट्रॉन्ग इमोशन में बहने से पहले खुद को कुछ वक्त दो, कुछ ठहरो, ताकि झाग थम जाए और असली सतह और रंग नजर आएं।
आजकल बहुत बिजी रहता हूं। तो आशिमा को ये सब समझाकर चैट बॉक्स बंद कर दिया। फिर घर को देखने लगा। नया घर है। दिल्ली गया था तो चंपू जी और दूसरे दोस्तों ने मिलकर सामान तो शिफ्ट कर दिया, मगर अभी सेट नहीं किया था। हर कमरे में बस सामान का ही ढेर लगा था। अचानक से लगने लगा कि कब तक यूं ही अकेले सामान, अकेली दीवारों के साथ किसी की चैट, किसी के फोन या मैसेज का इंतजार करता रहूंगा। कब तक सन्नाटे के शोर में गुमसुम खड़ा रहूंगा। यही सोचते-सोचते लाइट ऑन किए ही सो गया। सुबह उठा, तो पहले कुछ घंटे आलस में ही बीते। फिर लगा कि जैसे किसी ने फुसफुसाकर कहा, यू तो लव लाइफ न। उठ गया। अगले एक घंटे में ड्राइंग रूम सेट हो चुका था। बिल्कुल वैसा ही जैसा किसी अच्छे बच्चे का होना चाहिए। क्रॉकरी, शो पीस, वाइन ग्लासेज, टैडी, स्टोन्स, भगवान जी, सब लोग अपनी अपनी अपनी जगह पर फिटफाट। फिर कुशन भी सेट कर दिए। तीन कमरों में कम से कम एक कमरा तो जिंदगी की रौनक से भर दिया आज। अगले कुछ दिनों में बाकी कमरों में भी हरारत लाने की कोशिश करूंगा। आज ऑफिस आते टाइम पलटकर अपना ड्राइंगरूम देखा और खुद से कहा, आई लव लाइफ। आप भी इस मंतर को ट्राई कर सकते हैं, आखिर जिंदगी के सबकों पर किसी का कॉपीराइट तो है नहीं। हैव ए ग्रेट वीक चंडीगढ़
बुधवार, अगस्त 04, 2010
झल्ली लड़की को समझाया, आई लव लाइफ
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saurabh dwivedi
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1 टिप्पणी:
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-rajesh
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