शनिवार, सितंबर 11, 2010

जबराट फिल्म है दबंग

चंडीगढ़ को इस तरह से देखना अलग ही एक्सपीरियंस था। लग रहा था कि बीकानेर या बुलंदशहर के किसी सिनेमा हॉल में बैठकर सिनेमा देख रहे हैं। सलमान खान की धांसू एंट्री होते ही जोरदार तालियां और शोर। फिर सोनाक्षी सिन्हा की एंट्री होते ही सीटियों का शोर। मुन्नी बदनाम हुई ...गाना आने पर तो लड़के बावले हो जाते हैं और सीट पर खड़े होकर डांस करने लगते हैं। इंडिया के दबंग सिनेमा में आपका स्वागत है। वो कोई दस बीस साल पहले फिल्म के पोस्टर पर लिखा रहता था न एक्शन रोमांस और मारधाड़ से भरपूर ... दबंग वैसी ही फिल्म है। कहीं भी बोर नहीं करती, हर जगह देसी ढंग से स्टाइल परोसती और फुल्टू एंटरटेन करती, बहुत दिनों से कोई जाबर मूवी नहीं देखी, तो दबंग देखिए पइसा तो छोडि़ए पाई भी वसूल करवा देगी ये।
क्या भूलूं क्या याद करूं
सलमान खान चुलबुल पांडे के रोल में गदर लगे हैं। मुझे अक्सर लगता था कि काश ये हैंडसम हीरो कुछ एक्टिंग भी कर पाता, इस फिल्म ने मेरे काश का गर्दा उड़ा दिया। एक कैरेक्टर इंस्पेक्टर चुलबुल की तारीफ करते हुए बताता है कि थानेदार साहब अंदर से बुलबुल हैं और बाहर से दबंग। फिल्म भी ऐसी ही है, अंदर से सुरीली और मेलोड्रामा से भरपूर और बाहर से ऐसी कि बुलेट ट्रेन से गर्दन बाहर निकालकर नजारे देख रहें हो जैसे। सलमान की स्ट ाइल और फिल्म के डायलॉग दोनों ही सालों-साल याद रहेंगे। रॉबिनहुड, हम रॉबिनहुड पांडे उर्फ चुलबुल हैं। ...लड़की तो बहुत जबराट लग रही है। ...पांडे जी अब सेंटी होना बंद करिए। ...भइया जी स्माइल प्लीज और ...मार से नहीं साहब प्यार से डर लगता है। अरे एक और डायलॉग पेशे नजर है, भइया कानून के हाथ और चुन्नी सिंह की लात बहुत लंबी होती है।
सलमान जब मारते ...बोले तो वॉन्टेड का एक्सटेंशन। मगर कहीं भी ये एक्शन बोझिल नहीं लगते। बाबू साहब चश्मा भी शर्ट के पीछे लगाते हैं, ताकि आगे-पीछे सब दिख सके। सोनाक्षी के हिस्से ज्यादा डायलॉग नहीं आए, मगर जितने भी आए, उनमें वो शोख और मासूम दोनों लगी हैं। वे रीना रॉय की याद दिलाती हैं। सिनेस्क्रीन पर गर्ली एक्ट्रेस देखकर अगर ऊब चुके हैं, तो सोनाक्षी को देखिए, ये पर्दे पर औरत की वापसी की तरह है। सोनू सूद ने भी चुन्नी के रोल के साथ ठीक बर्ताव किया है। फिल्म के गाने जल्दी-जल्दी आते हैं, मगर कम्बख्त पहले ही इतने हिट हो चुके हैं, कि बोर होना भी चाहें तो नहीं होने देते।
और अंत में शाबासी
डायरेक्टर अभिनव कश्यप ने फिल्म के तेवर किसी भी फ्रेम में कमजोर नहीं पडऩे दिए। कहीं से नहीं लगता कि ये अनुराग के भाई की पहली पिच्चर है। कहानी कोई नई नहीं है। सौतेले बाप की उपेक्षा झेलता जिद्दी लड़का, जो बड़ा होकर इंस्पेक्टर बनता है। एक गरीब मटका बनाने वाली से प्यार करता है, मां का ख्याल रखता है और बदमाश टाइप के एलिमेंट से भिड़ता है। आखिरी में मां के बिना बिखर रही फैमिली एक हो जाती है और गुंडा वैसे ही मरता है, जैसे उसको मरना चाहिए। ये सब कुछ हम अमिताभ के सिनेमा में खूब देख चुके हैं और अब कुछ भूलने से लगे थे। मगर नहीं, दबंग रिवाइवल कोर्स की तरह आई और इंडिया के खालिस सिनेमा को खूब सारी ऑक्सीजन दे गई। अगर गुस्सा आता है, प्यार आता है, आंसू आते हैं, हंसी आती है, तो ये फिल्म आपके लिए है।

2 टिप्‍पणियां:

गजेन्द्र सिंह ने कहा…

भैया हमने भी देखी है एकदम बकवास फिल्म है .... ऐसा लग रहा है जैसे को साउथ इंडियन मूवी देख रहे हो ...
गणेशचतुर्थी और ईद की शुभकामनाये

इस पर अपनी राय दे :-
(जानिए पांडव के नाम पंजाबी में ...)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_11.html

Neeraj Bhushan ने कहा…

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