सोमवार, मई 19, 2008

बहुत दिनों बाद हुई सुबह

सुबह सवेरे गुड मॉर्निंग कहना अच्छी बात है। आज कई दिनों बाद मैंने भी सुबह देखी। इन दिनों जेएनयू की सुबह बहुत खूबसूरत होती है। यार दावा कर सकते हैं कि कब नहीं होती। रात गए हवा ने जमकर नहाया सो सड़कों पर पानी फैला पड़ा था। कहीं कहीं पानी के चहबच्चे जमा हो रखे थे। इन सबसे खुश होकर अमलताश के पीले फूल सड़क पर बिखरे पड़े थे। लगा कि कोई अल्हड़ नवयौवना खुद की खूबसूरती से बेपरवार हो बाहर निकल पड़ी है। शर्ट में बाइक चलाने के दौरान इसी हवा का कुछ हिस्सा अंदर घुस रहा था। गुदगुदाता सा अहसास जिसने सुबह सवेरे नींद पूरी न होने पर भी उठने की वजह से गुजलाए मुंह को ताजगी के अहसास से भर दिया। सुबह वाकई खूबसूरत होती है। सोच रहा हूं कि अब उससे मुलाकात में ज्यादा फासला न रखा करूं। खैर हाल ए नसीम यहीं खत्म होता है...एक शेर याद आ रहा है.... रात होगी घनी काली गम की बदरी भी छाएगी, सुबह का इंतजार करना सुबह जरूर आएगी...

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

very b'ful.. i miss JNU n those trees full of Amaltash yellow flowers! i still have some photos of those ones...